Diplomacy Diaries with ✍🏻 निशांत श्रीवास्तव
जब बात आती है यूनेस्को द्वारा घोषित “प्रेह विहियर मंदिर” की, तो यह सिर्फ दो देशों—कंबोडिया और थाईलैंड—के बीच सीमा विवाद नहीं, बल्कि वैश्विक कूटनीति का प्रतीक बन चुका है।

यह मंदिर, जो कंबोडिया और थाईलैंड की सीमा पर स्थित है, आज विश्व धरोहर स्थल के रूप में अंतरराष्ट्रीय महत्व रखता है। जब कंबोडिया ने इसे यूनेस्को में पंजीकृत कराया, तभी से यह मामला और भी अधिक संवेदनशील हो गया।
क्या ट्रंप फिर कूदेंगे इस मुद्दे में?
अब सवाल यह है कि इस विवाद में कोई बाहरी शक्ति, खासकर डोनाल्ड ट्रंप जैसा शख्स फिर से “शांति दूत” बनने की कोशिश करेगा? ट्रंप पहले भी कई बार ऐसे मामलों में खुद को मध्यस्थ के रूप में पेश कर चुके हैं—फिर चाहे वह उत्तर कोरिया से वार्ता हो या ईरान-इज़राइल मुद्दा।
ट्रंप का रिकॉर्ड: विवादों में अवसर तलाशना
इतिहास गवाह है कि ट्रंप ने अंतरराष्ट्रीय कूटनीति को कई बार व्यापारिक सौदे के रूप में देखा है। इसीलिए, प्रेह विहियर मंदिर विवाद उनके लिए एक और “डील मेकिंग” का मौका हो सकता है।
क्या कंबोडिया-थाईलैंड ट्रंप को स्वीकार करेंगे?
सबसे बड़ा सवाल यही है—क्या दोनों देश ट्रंप को एक निष्पक्ष मध्यस्थ के रूप में स्वीकार करेंगे? क्या वे उनके “बिजनेस माइंडेड” कूटनीति के साथ सहज होंगे?
या फिर वे यूनेस्को और अंतरराष्ट्रीय न्यायालय जैसे संस्थानों को ही प्राथमिकता देंगे?
निष्कर्ष: ट्रंप का नया सपना?
यह तो समय बताएगा कि क्या ट्रंप इस मंदिर विवाद में मीडिएटर बनकर फिर से सुर्खियों में आने की कोशिश करेंगे या नहीं। लेकिन यदि ऐसा होता है, तो यह एक बार फिर “शांति दूत” की छवि बनाने की उनकी कोशिशों में एक नया अध्याय जोड़ सकता है।
