जब भी भारतीय संविधान की बात होती है, नाम उभरता है – डॉ. भीमराव अंबेडकर का। यह स्वाभाविक भी है, क्योंकि उन्होंने संविधान ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष के रूप में ऐतिहासिक भूमिका निभाई। लेकिन एक नाम है, जिसे इतिहास ने लगभग भुला ही दिया – डॉ. बेनीगल नारसिंह राव (बी.एन. राव)।

बहुत कम लोग जानते हैं कि संविधान सभा में ड्राफ्टिंग कमेटी के गठन से पहले ही डॉ. राव को संविधान सलाहकार नियुक्त किया गया था। भारत का पहला ड्राफ्ट संविधान, उन्होंने अकेले अपने अध्ययन और अनुभव से तैयार किया था। यह कार्य उन्होंने न सिर्फ तटस्थता से किया, बल्कि भारतीय परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए जटिल विदेशी संविधानों का तुलनात्मक विश्लेषण करके किया।
🔍 तो फिर उन्हें क्यों भुला दिया गया?
कारण साफ हैं —
राजनीतिक नेतृत्व की विशाल छाया,
सामाजिक न्याय की राजनीति में प्रतीकों का निर्माण,
और स्वयं राव का मितभाषी, विनम्र स्वभाव।
वे न भाषण देते थे, न मंच सजाते थे। उन्होंने जो किया, वह भारत के लिए किया – गुमनाम रहकर, लेकिन अमूल्य योगदान देकर।
📜 इतिहास का अधूरा दस्तावेज
भारतीय इतिहास लेखन की विडंबना यह है कि प्रचार और राजनीति ने योगदान को मापने का पैमाना तय किया है। जिस व्यक्ति ने संविधान का बीज बोया, उसे कहीं कोनों में दबा दिया गया, और जिस व्यक्ति ने उस बीज को वृक्ष बनाया, उसे एकमात्र निर्माता घोषित कर दिया गया।
यह न तो डॉ. अंबेडकर के योगदान को छोटा करता है, न उनके सम्मान में कोई कमी लाता है, लेकिन सच यह है कि डॉ. राव के बिना संविधान की आधारशिला ही संभव नहीं थी।
🇮🇳 अब क्या करना चाहिए?
देश को चाहिए कि वह डॉ. बी.एन. राव जैसे ‘मौन राष्ट्रनिर्माताओं’ को पहचान दे, सम्मान दे, और उन्हें इतिहास के केंद्र में लाए। यह सिर्फ एक व्यक्ति के प्रति कृतज्ञता नहीं, बल्कि देश के संविधान और संस्थानों के प्रति निष्ठा का प्रतीक होगा।
भारत को आगे बढ़ना है तो उसे अपने इतिहास की अनकही परतों को समझना होगा — जहां कोई नेता नहीं, बल्कि एक तपस्वी न्यायविद बैठा था, जिसने कानून की भाषा में भारत की आत्मा को गढ़ा।
– शैलेश कुमार सिंह
संपादक, Abhivarta.com
