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भारत के सत्य सनातन ज्ञान चक्षु में वर्तमान काल का मोतियाबिंद

अभी वार्ता डेस्क | संवाददाता: जीव कांत झा, संगठन सचिव – जन सामान्य मंच | संयोजक: नदी संवाद

प्रस्तावना: उज्ज्वल अतीत से धुंधले वर्तमान की ओर
भारत की आत्मा यदि किसी शब्द में सिमटी है तो वह है — “सत्य”। यह सत्य सनातन है, अनादि है और ज्ञान का वह स्रोत है जिससे वेद, उपनिषद, योग, आयुर्वेद, खगोल, तर्कशास्त्र जैसे अनमोल शास्त्र उत्पन्न हुए। परंतु आज इसी भारत में यह ज्ञान चक्षु सांस्कृतिक मोतियाबिंद से ग्रस्त है — जो देख तो सकता है, पर सत्य को पहचान नहीं पाता।

जीव कांत झा, संगठन सचिव – जन सामान्य मंच



औपनिवेशिक हमला और शिक्षा का पतन
ब्रिटिश सत्ता ने भारतीयों में हीन भावना भरने के लिए हमारे पारंपरिक शिक्षा तंत्र को नष्ट कर दिया। मैकाले की शिक्षा नीति ने भारतीय आत्मा को पश्चिमी प्रमाणपत्रों में बाँध दिया और हमारी मूल संस्कृति को ‘अप्रासंगिक’ घोषित कर दिया।

धर्म की गलत व्याख्या और सांस्कृतिक विस्मृति
आज धर्म को केवल पूजा-पद्धति से जोड़ा जा रहा है, जबकि भारतीय दृष्टि में धर्म आत्मानुशासन, सत्यनिष्ठा और कर्तव्य का नाम है। यही कारण है कि विदेशी विश्वविद्यालय आज भारतीय दर्शन को गंभीरता से पढ़ाते हैं, जबकि भारत में उन्हें त्यागा जा रहा है।

शिक्षा का उद्देश्य: ज्ञान नहीं, केवल नौकरी
विद्यालय और विश्वविद्यालय आज केवल कौशल केंद्र बन चुके हैं, जहाँ रोजगार के लिए शिक्षित किया जाता है, पर आत्म-चिंतन, प्रश्न और गहराई को नकार दिया गया है।

मीडिया और मनोरंजन: अज्ञान का उत्सव
आज मीडिया और मनोरंजन भारत की गौरवमयी परंपराओं का उपहास करते हैं। सोशल मीडिया और टीवी ने जनमत को इस हद तक भ्रमित कर दिया है कि लोग अपनी ही संस्कृति को हेय दृष्टि से देखने लगे हैं।

प्रकृति, संस्कृति और आध्यात्म से विचलन
भारत की संस्कृति सदैव प्रकृति-संवेदनशील रही है। लेकिन आज नदियाँ, वृक्ष, पर्वत केवल प्रतीक रह गए हैं। हमें यह समझना होगा कि भारत की आत्मा इनसे जुड़ी हुई है, और इनके बिना जीवन अधूरा है।

राजनीति में सांस्कृतिक शून्यता
राजनीति अब धर्म, नीति और संस्कृति से कट चुकी है। सत्ता पाने के गणित में अब नीतिकारों को भारतीय दृष्टिकोण से कोई सरोकार नहीं। राजनीति में केवल डेटा, रणनीति और प्रचार रह गया है।

उपचार: एक व्यापक सांस्कृतिक नवजागरण
अब समय आ गया है जब गुरुकुलों की पुनर्स्थापना, वैदिक शिक्षा केंद्र, योग-आयुर्वेद, भारतीय न्याय और तर्क प्रणाली को पुनर्जीवित किया जाए। डिजिटल युग इस नवजागरण के लिए सबसे उपयुक्त साधन है, बशर्ते युवा पीढ़ी आत्मसाक्षात्कार के पथ पर लौटे।

समापन: फिर उसी शिखर की ओ
मोतियाबिंद से ग्रस्त यह ज्ञान चक्षु तभी पुनः जागृत होगा जब भारत पुनः सत्य, धर्म, और आत्मिकता के पथ पर चलेगा। हमें न केवल वाणी में, बल्कि जीवन में वह तेज लाना होगा जो भारत को सदियों तक विशुद्ध ज्ञान का केंद्र बनाता रहा।

Abhi Varta
Author: Abhi Varta

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